Friday, April 8, 2016

देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -3 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

पिछले Blog देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार की अद्भुत कथा (The great doctor of Gods-Ashwinikumar !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना) से आगे। ......  

                       अश्विनीकुमार आयुर्वेदिक चिकित्साशास्त्र के परम ज्ञाता एवं परोपकारी देवता थे।कितने ही लोगों को उन्होंने युवावस्था प्रदान किया। ऋषि च्यवन को युवावस्था प्रदान करने की कथा तो पिछले ब्लॉग में पढ़ी होगी। और भी लोगों को युवावस्था दी जो निम्नलिखित हैं:-


कक्षीवान ऋषि की कन्या घोषा    

                      घोषा युवावस्था में ही कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गई थी। इस कारण उसका विवाह भी न हुआ। उसने तपस्या को अपने जीवन का अंग बना लिया। तपस्या करते करते उसकी वृद्धावस्था आ गई। एक दिन उसके मन में विचार आया की एक स्त्री के लिए उसका पति ही सबकुछ होता है। पतिसेवा ही सबसे बड़ा कर्त्तव्य है। पति के बिना पुत्र भी नहीं है जिससे परलोक का आधार नहीं है। पति और पुत्र के न होने से घोषा को बड़ा संताप हुआ। वह चिंतित और उदास रहने लगी। एक दिन उसे याद आया की उसके पिता ने भी वृद्धावस्था में अश्विनीकुमारों को प्रसन्न कर यौवन प्राप्त किया था। साथ ही उन्हें मिला आरोग्य, आयु एवं ऐश्वर्य। 

               घोषा ने भी दयालु अश्विनीकुमारों को प्रसन्न करने का संकल्प किया किन्तु उन्हें प्रसन्न करने का उसके पास मन्त्र न था। घोषा ने तप का सहारा लिया। तप के प्रभाव से उसे दो मन्त्रों के दर्शन हुए। घोषा ने दोनों मन्त्रों का गान किया जिससे अश्विनीकुमार द्वय प्रसन्न हो गए। उन देवता ने प्रगट हो कर घोषा को जवान कर दिया और उसके कुष्ठ रोग को दूर कर दिया। योग्य वर से घोषा का विवाह भी कर दिया। घोषा को एक पुत्र भी हुआ जिनका नाम था ऋषि सहस्त्य। तो इतने दयालु हैं दोनों अश्विनीकुमार। 


वन्दन ऋषि   

वंदन ऋषि को अश्विनीकुमारों द्वारा कुएँ से निकालना 

वन्दन ऋषि अश्विनीकुमारों के परम भक्त थे और नित्य उनकी स्तुति किया करते थे। जैसा प्रकृति का नियम है धीरे धीरे उन्होंने वृद्धावस्था में प्रवेश किया। फिर उनके अंगों पर शिथिलता छाने लगी और कष्ट बढ़ने लगा । तब वन्दन ऋषि ने अश्विनीकुमारों से प्रार्थना की कि वे उनका बुढ़ापा दूर कर दें। दयालु हृदय अश्विनीकुमारों ने उनकी प्रार्थना सुन ली। वन्दन ऋषि के शिथिल अंगों को उन्होंने कुशल कलाकार की तरह दुरुस्त किया फिर उन्हें युवावस्था भी प्रदान किया। इतना ही नहीं बिना मांगे उनकी आयु को भी बढ़ा दिया। आगे भी उनके जीवन में जो कष्ट आते उन्हें अश्विनीकुमार द्वय दूर करते जाते। एक बार ऋषि वन्दन कुएँ में गिर गए। इस विपत्ति के समय भी अश्विनीकुमारों ने समय पर आकर उन्हें कुएँ से निकला और अत्यन्त विकल हो रही उनकी पत्नी को भी सांत्वना दी और आश्वस्त किया। 


श्याव ऋषि         

            घोषा की तरह ही श्याव ऋषि कुष्ठ रोग से ग्रसित थे बल्कि अत्यन्त भयावह स्थिति में पहुँच गए थे। एक तरफ के उनके अंग गल चुके थे। परम पीड़ा में कातर हो कर उन्होंने अश्विनीकुमारों की स्तुति की। दयालु देवों के चिकित्सक अश्विनीकुमार द्वय ने कृपा की और प्रकट हो कर उन्हें पूर्णतः रोगमुक्त कर दिया। रोग के करण  एक तरफ के गल चुके अंगों को भी फिर से प्रगट किया। रोगमुक्त होने पर वे एक स्वस्थ युवा हो गए। विवाह लायक होने के कारण देव वैद्य ने उनका विवाह भी करा दिया। 

           इन सब कथाओं का प्रमाण ऋग्वेद में भी मिलता है।                       

          ये तो थीं अश्विनीकुमारों द्वारा कृपाकर अद्वितीय चिकित्सा द्वारा रोगमुक्त कर युवावस्था प्रदान करने की कथाएं। चिकित्सा द्वारा उन्होंने कई अंधों को भी दृष्टि प्रदान की थी। ये उदहारण /कथाएं पढ़ें अगले ब्लॉग में इस लिंक पर। 

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