Wednesday, March 23, 2016

देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की अदभुत कथा (The great doctors of Gods-Ashwinikumars !)-भाग -2 (चिकित्सा के द्वारा युवावस्था प्रदान करना)

देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार की अद्भुत कथा Part-1 से आगे 

God Ashwinikumar made  many old men young through Ayurveda 

                       अश्विनीकुमार आयुर्वेदिक चिकित्साशास्त्र के परम ज्ञाता थे। अपनी इस विद्या के द्वारा उन्होंने अनेक परोपकार किये।जैसे वृद्ध को युवा बनाना, अंधे को दृष्टि प्रदान करना, शल्य - क्रिया (Surgery) द्वारा कटे अंगों, यहाँ तक कि कटे सर को जोड़ना इत्यादि। सर्वप्रथम  वृद्धों को युवावस्था प्रदान करने की घटनाओं का वर्णन देखें :- 

 च्यवन ऋषि को वृद्ध से युवा बनाया !                    

                          महर्षि भृगु के पुत्र थे च्यवन। तप करना उन्हें बचपन से ही प्रिय था। एक बार उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे तप करने की सोची। वैदूर्य पर्वत के पास नर्मदा के तट पर तपस्या प्रारम्भ की। तपस्या में वे इतने एकाग्र और लींन हो गए कि सूखी लकड़ी जैसे लगते थे। इस कारण उनके पूरे शरीर पर दीमकों ने अपना घर बना लिया। लगता ही नहीं था कि वहाँ कोई मनुष्य है। कुछ ही दिनों बाद वहाँ शर्याति नाम के राजा अपने सैनिकों एवं सुरक्षाकर्मियों के साथ विश्राम करने आये। राजा हर प्रकार से सुखी थे किन्तु उन्हें एकमात्र पुत्री सुकन्या के शिवा और कोई संतान न थी। सुकन्या अतिसुन्दर शालीन लड़की थी। वह भी उनके साथ आई थी। जंगल में सखियों संग खेलती वह तप कर रहे च्यवन ऋषि के आस पास पहुँची। उसकी मधुर आवाज सुनकर ऋषि की एकाग्रता भंग हो गई। दीमक की बाम्बी के अंदर से उन्होंने उसे देखा तो आकर्षित हो गए। ऋषि ने सुकन्या को पुकारा किन्तु उनकी क्षीण आवाज उस तक पहुँच नहीं सकी। खेलते कूदते सुकन्या ने दीमक की बाम्बी देखी तो कुतूहलवश पास पहुँची। बाम्बी के अंदर दो चमकती वस्तुएं देख उसने कांटे उनमे डाल दिए। आँखे बिंध जाने से पीड़ावश ऋषि कराह उठे। थे वे बड़े क्रोधी स्वाभाव के पर प्रेमवश सुकन्या को तो उन्होंने कुछ नहीं कहा किन्तु क्रोध में ऐसा प्रभाव उत्पन्न किया कि राजा की सेना के मल -मूत्र बंद हो गए। सैनिक पीड़ा से कराहने लगे। राजा शर्याति को पता था कि च्यवन ऋषि आस -पास ही कहीं तपस्यारत हैं। वे समझ गए कि जरूर किसी ने उनका अपराध किया है। पूछ ताछ करने पर सुकन्या ने दीमक की बाम्बी की घटना सुनाई। राजा वहां गए। ऋषि को दीमक की मिटटी के बीच देखा और उनसे पुत्री के अपराध के लिए क्षमा मांगी। उनसे सैनिकों को कष्टमुक्त करने का अनुरोध किया। ऋषि मान तो गए पर इस शर्त के साथ कि राजा अपनी कन्या का विवाह ऋषि से करें। राजा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए पर प्रजा की भलाई के लिए सुकन्या तैयार हो गयी। 

                      ऋषि के प्रसन्न होते ही सेना कष्टमुक्त हो गयी। राजा सेना सहित अपनी राजधानी चले गए। सुकन्या पति सेवा में लींन हो गयी। सेवा और प्रेम के प्रभाव से धीरे धीरे ऋषि स्वस्थ होने लगे। इधर देव वैद्य  रोगी मनुष्यों को खोज कर उन्हें स्वस्थ कर रहे थे। संयोगवश वे च्यवन ऋषि के आश्रम के पास से गुजरे और रूपवती सुकन्या को देखा। उन्होंने उससे परिचय पूछा। सुकन्या उस समय स्नान कर लौट रही थी। उसने अपना, पति और पिता का नाम उन्हें बताया। अश्विनीकुमारों ने कहा कि तुम अप्रतिम सुंदरी हो। ऐसे बूढ़े पति के साथ क्यों हो जो तुम्हें कोई सुख नहीं दे सकता, तुम हममें से किसी एक को पति चुन लो। सुकन्या ने कहा आप मेरे बारे में उचित नहीं सोच रहे। मैं अपने पति में पूरी निष्ठा रखती हूँ और प्रेम करती हूँ। ऐसे वचन सुन अश्विनीकुमार  प्रभावित हुए और कहा हम देव वैद्य हैं।  तुम्हारे पति को पूर्णतः स्वस्थ एवं अपने जैसा सुन्दर और युवा बना देंगे तब तुम हम तीनो में से किसी एक को अपना पति चुन लेना।यदि यह शर्त स्वीकार हो तो अपने पति को यहाँ ले कर आओ। 

                सुकन्या ने यह बात अपने पति को सुनाई। वे देव वैद्य अश्विनीकुमारों के प्रभाव को जानते थे। यौवन एवं सौंदर्य पाने का प्रस्ताव वे अस्वीकार न कर सके। सुकन्या के साथ वे अश्विनीकुमारों के पास पहुंचे।अश्विनीकुमारों ने ऋषि को पहले जल के अंदर प्रवेश कराया। फिर थोड़ी देर बाद स्वयं भी जल के अंदर चिकित्सा करने उतरे।तीन घंटे बाद चिकित्सा पूर्ण होने पर तीनो जल से बाहर आये। ऋषि च्यवन बिलकुल अश्विनीकुमारों के समान तरुण, स्वस्थ एवं सुन्दर हो चुके थे और यह कहना कठिन था कि उनमे से ऋषि कौन थे।उन्होंने कहा हम तीनों में से किसी एक को अपना पति चुन लो। अब सुकन्या के परीक्षा की बारी पुनः आई। कुछ देर तक चुप तीनो को निहारती रही। अंत में पातिव्रत धर्म ने उसका साथ दिया और अपने पति को पहचान कर चुन लिया। ऋषि च्यवन ने स्वास्थ्य, यौवन, सुंदरता और पतिव्रता पत्नी पायी। उन्होंने अश्विनीकुमारों का उपकार मानते हुए कहा कि वे यज्ञ में देवराज इन्द्र के सामने ही अश्विनीकुमारों को सोमरस पान का अधिकारी बनायेंगे।

अश्विनीकुमारों को सोमरस पान का अधिकारी बनाना  

जब राजा शर्याति को पूरी घटना का पता चला तो तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए और पुनः पुत्री के पास च्यवन ऋषि के आश्रम पर परिवार और सुरक्षाकर्मियों के साथ आये। सुकन्या की माता ख़ुशी से पुत्री के गले मिल रो पड़ी। ऋषि च्यवन भी उनलोगों से मिल प्रसन्न थे। राजा को कई कथाएँ सुनाई। फिर कहा राजा मैं आपसे यज्ञ कराऊंगा, यज्ञ की तैयारी करें। नियत समय पर यज्ञ आरम्भ हुआ। देवताओं का आवाहन किया गया। ऋषि ने अश्विनीकुमारों को सोमरस पान की तयारी की। इन्द्र वहीं बैठे थे।उन्होंने वैद्यवृत्ति होने के कारण अश्विनीकुमारों को सोमरस पान का अधिकारी नहीं माना और ऋषि को ऐसा करने से मना किया। 

Sketch: Courtesy - Rahul Mishra

                  ऋषि ने कहा कि ये भी देवता हैं, रूप -गुण में सबसे बढ़कर हैं और कितनो का ही उपकार किया है फिर ये कैसे अधिकारी नहीं। इंद्र ने कहा ये मनमाना रूप धर कर मनुष्यों के बीच फिरते हैं और चिकित्सा का कार्य करते हैं इसलिए ये अधिकारी नहीं। पर ऋषि भी अपनी बात पर अड़े रहे और इंद्र की अवहेलना कर अश्विनीकुमारों को देने के लिए सोमरस उठाया। इंद्र ने हाथ में वज्र उठाकर कहा यदि तुम मेरी अवहेलना कर इन्हें सोमरस दोगे तो मैं तुमपर वज्र से प्रहार करूँगा। ऋषि ने वज्र वाले इंद्र के हाथ को हवा में ही स्तंभित (Fix) कर दिया और मन्त्रों का उच्चारण करते हुए अश्विनीकुमारों के लिए हवन कुण्ड में सोमरस की आहुति दे दी। फिर अपनी तपस्या के बल से हवनकुंड से ही एक भयानक "कृत्या" नाम की शक्ति उत्पन्न की जो देखने में अत्यंत विशाल और डरावनी थी। वह इंद्र को मारने के लिए दौड़ी। इंद्र डरकर ऋषि से बोले, ''आप क्रोधित न हों, आज से ये दोनों ही अश्विनीकुमार सोमरस के अधिकारी होंगे। मैंने तो ऐसा इसलिए किया की दुनिया आप की शक्ति को जाने और सुकन्या एवं राजा शर्याति की ख्याति फैले। आप प्रसन्न हों। " इंद्र की बातों से ऋषि का क्रोध शांत हुआ। उन्होंने कृत्या को वापस किया और देवराज इंद्र को मुक्त किया। 

             अश्विनीकुमारों द्वारा युवावस्था प्रदान करने की अन्य कथा पढ़ें अगले ब्लॉग में।                      

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